भौतिक पता
सिविक सेंटर, उत्तरापान शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, उल्टाडांगा, कंकुरगाछी कोलकाता, पश्चिम बंगाल, 700054
बर्फ़ की चुप्पी और बदलती आवाज़
2019 में मैं पहली बार गंगोत्री ग्लेशियर के पास गया था। बचपन में किताबों में इसे “गंगा की जन्मस्थली” पढ़ा था—एक भव्य, सफ़ेद, स्थिर संरचना। लेकिन जब सामने खड़ा हुआ तो गाइड ने उंगली से दूर इशारा किया, “यहाँ तक बर्फ़ हुआ करती थी 20 साल पहले।” अब वहाँ सिर्फ़ कंकड़-पत्थर और धूल थी। उस पल अहसास हुआ कि जलवायु परिवर्तन कोई “वैज्ञानिक रिपोर्ट” भर नहीं, यह आँखों के सामने घटता सच है।

हिमालय को अक्सर “तीसरा ध्रुव” कहा जाता है। यहाँ लगभग 10,000 ग्लेशियर हैं, और इन्हीं से बहती नदियाँ उत्तर भारत की धड़कन हैं। लेकिन यह धड़कन असमान होने लगी है—तेज़ भी और थकी हुई भी।
हिमालय: सिर्फ़ पहाड़ नहीं, जीवन का स्रोत
- गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, सिंधु जैसी नदियाँ इन्हीं ग्लेशियरों से निकलती हैं।
- लगभग 70 करोड़ लोग सीधे-सीधे इनके पानी पर निर्भर हैं—पीने से लेकर खेती तक।
- गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन अकेले एशिया का सबसे बड़ा कृषि क्षेत्र है।
अगर ये ग्लेशियर सिकुड़ेंगे, तो सिर्फ़ बर्फ़ नहीं, पूरा सामाजिक ताना-बाना डगमगा जाएगा।
जलवायु परिवर्तन की मार
बढ़ता तापमान
पिछले 50 सालों में हिमालय का औसत तापमान लगभग 1.5°C बढ़ चुका है। किसी पहाड़ी इलाके में यह मामूली नहीं, यह जीवन-मृत्यु का फर्क है।
बरसात का बिगड़ा पैटर्न
जहाँ बर्फ़ गिरनी चाहिए, वहाँ बारिश हो रही है। इससे बर्फ़ का संचय घट रहा है और पिघलन बढ़ रही है।
काला कार्बन (Black Carbon)
ट्रकों, फैक्टरियों और जंगल की आग से निकलने वाला धुआँ बर्फ़ पर जमता है। बर्फ़ का सफ़ेदपन सूरज की रोशनी को परावर्तित करता है, लेकिन काली परत उसे सोख लेती है और पिघलन तेज़ कर देती है।
तालिका 1: प्रमुख ग्लेशियर और उनका घटाव
ग्लेशियर | राज्य/क्षेत्र | पीछे हटने की दूरी | असर |
---|---|---|---|
गंगोत्री | उत्तराखंड | ~3 किमी (1936 से अब तक) | गंगा की जलधारा घट रही |
पिंडारी | कुमाऊँ, उत्तराखंड | ~1.5 किमी (40 साल में) | सिंचाई पर असर |
ज़ेमु | सिक्किम | ~20% क्षेत्रफल कम | अचानक बाढ़ का जोखिम |
सियाचिन | लद्दाख | हर साल ~10–15 मीटर | सैन्य तैनाती पर संकट |
गाँव वालों की जुबानी
लाचुंग (सिक्किम) का 65 वर्षीय पासांग दादा बताते हैं:
“पहले मार्च तक बर्फ़ रहती थी, अब जनवरी में ही पिघल जाती है। नदी कभी उफान मारती है, कभी एकदम सूखी। हमारी खेती, हमारे त्योहार, सब गड़बड़ा गए हैं।”
इनकी बातें आंकड़ों से भी ज़्यादा गहरी सच्चाई बयां करती हैं।
बढ़ते खतरे
GLOF (ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड)
पिघलती बर्फ़ झीलें बनाती है। और जब ये झीलें अचानक टूटती हैं, तो पूरा गाँव बहा ले जाती हैं। 2013 की केदारनाथ आपदा आंशिक रूप से इसी से जुड़ी थी।
पानी का संकट
अभी तो पिघलने से पानी अधिक दिखता है। लेकिन जब बर्फ़ का स्टॉक ही घट जाएगा, तो आने वाले दशकों में नदियाँ सूख जाएँगी।
जैव विविधता पर असर
हिम तेंदुआ, कस्तूरी मृग, हिमालयी नीला पोपी जैसी प्रजातियाँ बर्फ़ पर निर्भर हैं। बर्फ़ घटेगी तो यह भी विलुप्त हो जाएँगे।
तालिका 2: भविष्य के अनुमान (IPCC रिपोर्ट के आधार पर)
परिदृश्य | 2050 तक | 2100 तक |
---|---|---|
कम उत्सर्जन (Optimistic) | ~30% बर्फ़ घटेगी | ~50% तक घटाव |
उच्च उत्सर्जन (Business-as-usual) | ~50% घटेगी | 70–80% खत्म |
रणनीतिक और सुरक्षा आयाम
सियाचिन ग्लेशियर—दुनिया का सबसे ऊँचा युद्धक्षेत्र। लेकिन बर्फ़ के तेज़ी से पिघलने से सेना की पोस्टिंग और आपूर्ति दोनों कठिन हो रही हैं। जलवायु परिवर्तन सिर्फ़ पर्यावरणीय नहीं, रणनीतिक खतरा भी है।
समाधान की ओर
- स्थानीय पहल: गाँवों में GLOF अलार्म सिस्टम, वर्षा जल संग्रहण, और टिकाऊ पर्यटन।
- राष्ट्रीय स्तर: कोयले पर निर्भरता घटाना, नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार।
- वैश्विक स्तर: हिमालय सिर्फ़ भारत का नहीं, नेपाल-भूटान-चीन सबका साझा है। सहयोग ज़रूरी है।
अंतिम विचार
हिमालय के ग्लेशियरों का पिघलना सिर्फ़ बर्फ़ का खोना नहीं है। यह हमारी सभ्यता की रीढ़ का टूटना है। अगर गंगा सूख गई, तो काशी का घाट भी सिर्फ़ पत्थर रह जाएगा। अगर ब्रह्मपुत्र कमजोर हुआ, तो असम की चाय भी सूख जाएगी।
जलवायु परिवर्तन दूर की चेतावनी नहीं है। यह अभी, हमारी आँखों के सामने हो रहा है। और सवाल यह है—क्या हम सिर्फ़ आँकड़े पढ़ते रहेंगे, या इस बर्फ़ को बचाने के लिए कुछ करेंगे?

भारती शर्मा एक स्वतंत्र पत्रकार और लेखिका हैं, जिनका झुकाव हमेशा से समाज, संस्कृति और पर्यावरण से जुड़ी कहानियों की ओर रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने विभिन्न स्थानीय समाचार पत्रों और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर काम किया।
भारती का मानना है कि खबरें सिर्फ़ सूचनाएँ नहीं होतीं, बल्कि लोगों की आवाज़ और समाज की धड़कन होती हैं। इसी सोच के साथ वह Hindu News Today के लिए लिखती हैं। उनकी लेखनी कला, प्रकृति, खेल और सामाजिक बदलावों पर केंद्रित रहती है।
उनकी शैली सीधी, संवेदनशील और पाठकों से जुड़ने वाली है। लेखों में वह अक्सर ज़मीनी अनुभवों, स्थानीय किस्सों और सांस्कृतिक संदर्भों को शामिल करती हैं, ताकि पाठकों को सिर्फ़ जानकारी ही नहीं बल्कि जुड़ाव भी महसूस हो।