भौतिक पता
सिविक सेंटर, उत्तरापान शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, उल्टाडांगा, कंकुरगाछी कोलकाता, पश्चिम बंगाल, 700054
भारत के गाँवों की सुबह कभी मुर्गे की बांग से शुरू होती थी और शामें ढोलक या चौपाल की गपशप से खत्म। लेकिन अब वही सुबह मोबाइल नोटिफिकेशन की टनटन से खुलती है, और शामें व्हाट्सएप स्टेटस या यूट्यूब वीडियो में घुल जाती हैं। यह बदलाव इतना तेज़ हुआ है कि जिसने इसे देखा है, वही समझ सकता है। ग्रामीण भारत आज डिजिटल मीडिया की सबसे तेज़ बढ़ती हुई खपत करने वाली आबादी बन गया है।

मैं खुद जब उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के एक गाँव गया, तो देखा कि किसान के बेटे के हाथ में स्मार्टफोन है। वह खेत में काम के बीच टिक-टॉक जैसे शॉर्ट वीडियो देख रहा था। वहीं उसके पिता पास बैठकर मंडी भाव की जानकारी उसी फोन से ले रहे थे। यही है ग्रामीण भारत की नई कहानी—जहाँ एक ही डिवाइस मनोरंजन, ज्ञान, और व्यापार का केंद्र बन गया है।
बदलाव की बुनियाद: इंटरनेट और स्मार्टफोन
2016 के बाद जब जियो ने सस्ते डेटा पैक लांच किए, तब असली डिजिटल क्रांति गाँवों तक पहुँची। पहले एक जीबी डेटा की कीमत शहरों में भी लोगों को सोचने पर मजबूर कर देती थी, अब वही डेटा गाँव के हर घर में पहुँच गया।
आज ग्रामीण भारत में स्मार्टफोन महज़ सुविधा नहीं, बल्कि ज़रूरत बन गया है।
- बच्चे ऑनलाइन क्लास करते हैं।
- किसान मौसम और मंडी की जानकारी लेते हैं।
- महिलाएँ यूट्यूब से कुकिंग, सिलाई-बुनाई सीखती हैं।
- युवा फेसबुक, इंस्टाग्राम और शॉर्ट वीडियो ऐप्स पर अपनी मौजूदगी बनाते हैं।
गाँवों में डिजिटल मीडिया का स्वाद
अगर आप सोचते हैं कि गाँवों में लोग सिर्फ समाचार देखते हैं, तो आप गलत हैं। उनकी डिजिटल खपत बेहद विविध है।
- मनोरंजन: भोजपुरी, हरियाणवी और लोक संगीत वाले यूट्यूब चैनल्स लाखों व्यूज बटोरते हैं।
- शिक्षा: BYJU’s, Unacademy जैसे प्लेटफ़ॉर्म का इस्तेमाल गाँवों के बच्चे करते हैं।
- समाचार: गाँव के लोग अब सिर्फ अखबार पर निर्भर नहीं हैं, मोबाइल पर लाइव न्यूज़ देखते हैं।
- ई-कॉमर्स और सोशल मीडिया: अमेज़न, फ्लिपकार्ट से गाँवों में सामान आता है, और इंस्टाग्राम पर गाँव के युवा रील बनाकर पहचान पा रहे हैं।
मैंने एक गाँव में देखा कि एक 16 साल का लड़का अपने खेतों से जुड़े छोटे-छोटे वीडियो बनाकर यूट्यूब पर अपलोड करता है। उसके चैनल पर 50,000 सब्सक्राइबर हैं। यह डिजिटल मीडिया का जादू है।
आँकड़े जो कहानी कहते हैं
ग्रामीण भारत की डिजिटल खपत अब शहरों को भी पीछे छोड़ रही है।
श्रेणी | शहर (%) | गाँव (%) |
---|---|---|
इंटरनेट उपयोगकर्ता | 57 | 67 |
वीडियो उपभोग (यूट्यूब/OTT) | 62 | 74 |
सोशल मीडिया सक्रियता | 70 | 65 |
ई-लर्निंग भागीदारी | 45 | 52 |
(आँकड़े विभिन्न सर्वेक्षणों और उद्योग रिपोर्टों पर आधारित हैं)
इन आँकड़ों से साफ है कि गाँव अब पीछे नहीं हैं, बल्कि कई मामलों में आगे निकल रहे हैं।
सोशल मीडिया और गाँव का नया चेहरा
फेसबुक और इंस्टाग्राम ने गाँव की ज़िंदगी बदल दी है। अब गाँव के लड़के-लड़कियाँ भी वीडियो बनाकर सीधे वैश्विक दर्शकों से जुड़ रहे हैं।
- व्हाट्सएप ग्रुप्स – पंचायत से लेकर शादी-ब्याह तक, सबकी जानकारी व्हाट्सएप पर मिलती है।
- रील्स और शॉर्ट वीडियो – गाँव का संगीत, नृत्य और बोलियाँ अब सिर्फ गाँव तक सीमित नहीं रहीं।
- ऑनलाइन पहचान – कई युवाओं ने सोशल मीडिया पर कंटेंट बनाकर आय अर्जित करना शुरू कर दिया है।
यह डिजिटल पहचान गाँव के युवाओं को नया आत्मविश्वास दे रही है।
शिक्षा और ज्ञान का नया रास्ता
पहले गाँव में अच्छे स्कूल और कॉलेज न होने का बहाना चलता था। आज मोबाइल और इंटरनेट ने यह कमी काफी हद तक पूरी कर दी है।
- सरकारी योजनाएँ डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर उपलब्ध हैं।
- बच्चे ऑनलाइन क्लासेस और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं।
- महिलाएँ भी यूट्यूब से छोटे-छोटे हुनर सीखकर आत्मनिर्भर हो रही हैं।
गाँव की 18 साल की एक लड़की ने मुझे बताया कि उसने यूट्यूब से ब्यूटी पार्लर स्किल्स सीखी और अब गाँव में खुद का छोटा पार्लर चला रही है।
चुनौतियाँ: सब कुछ आसान नहीं
बेशक यह बदलाव शानदार है, पर चुनौतियाँ भी हैं।
- नेटवर्क समस्या: अभी भी कई गाँवों में सिग्नल कमजोर है।
- डिजिटल साक्षरता: लोग स्मार्टफोन तो खरीद लेते हैं, लेकिन उसका सुरक्षित इस्तेमाल नहीं जानते।
- फेक न्यूज़: गलत जानकारी गाँवों में तेजी से फैलती है और उसका असर गहरा होता है।
- महिला सहभागिता: गाँव की महिलाएँ अभी भी पुरुषों से पीछे हैं, हालांकि धीरे-धीरे स्थिति बदल रही है।
भविष्य की तस्वीर: क्या होगा आगे?
भारत के गाँव आने वाले वर्षों में डिजिटल मीडिया का सबसे बड़ा बाज़ार बनेंगे। OTT प्लेटफ़ॉर्म्स पहले ही क्षेत्रीय भाषाओं में कंटेंट बना रहे हैं। आने वाले समय में:
- किसान लाइव मार्केट डेटा से जुड़ेंगे।
- पंचायतें ई-गवर्नेंस को अपनाएँगी।
- शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ ऑनलाइन ही गाँव तक पहुँचेंगी।
- गाँव के कंटेंट क्रिएटर्स राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुँचेंगे।
व्यक्तिगत अनुभव
पिछली बार जब मैं बिहार के आरा जिले गया, तो देखा कि गाँव की महिलाएँ मिलकर “यूट्यूब किचन चैनल” चला रही थीं। वे मिलकर पकवान बनातीं और वीडियो अपलोड करतीं। उनके चैनल पर 1 लाख से ज़्यादा सब्सक्राइबर थे। जब मैंने उनसे पूछा कि उन्हें यह विचार कैसे आया, तो एक महिला ने मुस्कराते हुए कहा:
“पहले हम चौपाल पर मिलकर बातें करते थे, अब कैमरे के सामने मिलते हैं।”
यही है डिजिटल मीडिया का जादू—यह पुराने रिश्तों को नए रूप में जोड़ रहा है।
निष्कर्ष
ग्रामीण भारत में डिजिटल मीडिया की खपत अब सिर्फ मनोरंजन तक सीमित नहीं रही। यह शिक्षा, व्यापार, राजनीति और समाज की नई ताकत बन चुकी है। हाँ, चुनौतियाँ हैं, पर संभावनाएँ उससे कहीं ज्यादा बड़ी हैं।
गाँव अब पीछे नहीं, बल्कि डिजिटल भारत के भविष्य का सबसे मजबूत आधार हैं। आने वाले समय में जब आप किसी छोटे गाँव में जाएँगे और देखेंगे कि किसान मंडी भाव मोबाइल पर देख रहा है, बच्चे ऑनलाइन पढ़ रहे हैं और महिलाएँ यूट्यूब से नया हुनर सीख रही हैं—तो समझिएगा कि भारत का असली डिजिटल भविष्य यहीं लिखा जा रहा है।

भारती शर्मा एक स्वतंत्र पत्रकार और लेखिका हैं, जिनका झुकाव हमेशा से समाज, संस्कृति और पर्यावरण से जुड़ी कहानियों की ओर रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने विभिन्न स्थानीय समाचार पत्रों और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर काम किया।
भारती का मानना है कि खबरें सिर्फ़ सूचनाएँ नहीं होतीं, बल्कि लोगों की आवाज़ और समाज की धड़कन होती हैं। इसी सोच के साथ वह Hindu News Today के लिए लिखती हैं। उनकी लेखनी कला, प्रकृति, खेल और सामाजिक बदलावों पर केंद्रित रहती है।
उनकी शैली सीधी, संवेदनशील और पाठकों से जुड़ने वाली है। लेखों में वह अक्सर ज़मीनी अनुभवों, स्थानीय किस्सों और सांस्कृतिक संदर्भों को शामिल करती हैं, ताकि पाठकों को सिर्फ़ जानकारी ही नहीं बल्कि जुड़ाव भी महसूस हो।