भौतिक पता
सिविक सेंटर, उत्तरापान शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, उल्टाडांगा, कंकुरगाछी कोलकाता, पश्चिम बंगाल, 700054
यात्रा हमेशा से मनुष्य की जिज्ञासा का हिस्सा रही है। कोई समुद्र की लहरों से सवाल करता है, कोई पहाड़ की चोटियों से, कोई जंगल की खामोशी से। लेकिन 21वीं सदी की यात्रा का नया चेहरा सामने आया है—इको-टूरिज़्म। और भारत जैसे देश में, जहाँ प्राकृतिक विविधता हर मोड़ पर बदलती है, इको-टूरिज़्म सिर्फ पर्यटन का विकल्प नहीं बल्कि आने वाले कल की अनिवार्यता है।

मैंने इसे कई बार महसूस किया है। उत्तराखंड की एक घाटी में जब गाँव के होमस्टे में रात बिताई, तो वहाँ टीवी नहीं था, न एयरकंडीशनिंग। पर रात के आसमान में दूधिया आकाशगंगा साफ़ दिख रही थी। सुबह जब खेत में काम करने गए, तो होस्ट परिवार ने हमें स्थानीय व्यंजन खिलाए। उसी क्षण समझ आया कि असली यात्रा वही है जहाँ आप मेहमान नहीं, बल्कि समुदाय का हिस्सा बन जाते हैं। यही है इको-टूरिज़्म का जादू।
इको-टूरिज़्म की असली परिभाषा
इको-टूरिज़्म का अर्थ सिर्फ “ग्रीन होटल” या “प्लास्टिक फ्री ट्रिप” नहीं है। इसका सार यह है कि यात्रा पर्यावरण को नुकसान न पहुँचाए और स्थानीय लोगों को लाभ पहुँचाए। यह पर्यटन का ऐसा मॉडल है जिसमें प्रकृति, संस्कृति और अर्थव्यवस्था—तीनों संतुलन में हों।
आज कई जगह “इको” शब्द सिर्फ मार्केटिंग की भाषा बन गया है। पर असली इको-टूरिज़्म वह है जहाँ:
- पर्यटक अपने कचरे की जिम्मेदारी लेता है।
- स्थानीय लोग गाइड, होमस्टे, शिल्प और भोजन से सीधे जुड़ते हैं।
- प्राकृतिक संसाधन कम से कम प्रभावित होते हैं।
- यात्रा अनुभव सिर्फ दृश्य नहीं, बल्कि सीख भी देती है।
भारत की ज़मीन और इको-टूरिज़्म की संभावनाएँ
भारत के पास दुनिया के सबसे विविध प्राकृतिक संसाधन हैं।
- हिमालय – बर्फीले ग्लेशियर, उच्च पर्वतीय गाँव और अनोखी जैव विविधता।
- रेगिस्तान – थार की बालू, ऊँट कारवाँ और गाँव की परंपराएँ।
- तटीय क्षेत्र – केरल के बैकवाटर, अंडमान-निकोबार के कोरल रीफ, गुजरात के कच्छ।
- जंगल – मध्य प्रदेश के टाइगर रिज़र्व, असम के काज़ीरंगा, ओडिशा के भितरकनिका।
- पूर्वोत्तर – मेघालय के जीवित जड़ पुल, नागालैंड की जनजातीय संस्कृति, अरुणाचल की ज़ीरो वैली।
इतनी विविधता किसी भी देश में दुर्लभ है। यही वजह है कि भारत अगर सही रणनीति अपनाए, तो आने वाले वर्षों में विश्व का इको-टूरिज़्म हब बन सकता है।
क्यों ज़रूरी है इको-टूरिज़्म?
भारत में हर साल करोड़ों घरेलू और विदेशी पर्यटक आते हैं। यह संख्या लगातार बढ़ रही है। लेकिन इसका असर भी दिख रहा है—हिमालयी क्षेत्रों में ट्रेकिंग मार्गों पर कचरे के ढेर, गोवा के बीच पर प्लास्टिक की बोतलें, ताजमहल के पास प्रदूषण की मार।
अगर यही गति रही, तो पर्यटन खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार लेगा। इको-टूरिज़्म इस संकट का समाधान है।
- यह पर्यावरण को बचाता है – कम प्रदूषण, कम संसाधन दोहन।
- यह स्थानीय लोगों को सीधा फायदा देता है – गाइड, होमस्टे, शिल्पकार।
- यह यात्रियों को गहराई से जोड़ता है – सिर्फ फोटो नहीं, बल्कि अनुभव और शिक्षा।
भारत में इको-टूरिज़्म के मौजूदा उदाहरण
भारत ने पिछले कुछ दशकों में इको-टूरिज़्म की दिशा में अच्छे कदम उठाए हैं।
- सिक्किम – पहला ऑर्गेनिक स्टेट
यहाँ खेती में कैमिकल्स का प्रयोग नहीं होता। पर्यटन सीधे ऑर्गेनिक खेती और स्थानीय जीवन से जुड़ता है। - केरल के बैकवाटर
हाउसबोट्स को सोलर पावर से चलाने की कोशिश की जा रही है। गाँव के लोग पर्यटन का हिस्सा हैं। - काज़ीरंगा नेशनल पार्क (असम)
गैंडा देखने आने वाले पर्यटकों को गाँव के गाइड ही लेकर जाते हैं। - स्पीति और लद्दाख के होमस्टे
यहाँ स्थानीय परिवार अपने घरों को पर्यटकों के लिए खोलते हैं। इससे संस्कृति भी संरक्षित होती है और आमदनी भी। - मेघालय के जीवित जड़ पुल
यह पर्यटन का सबसे सुंदर रूप है जहाँ प्रकृति और मानव का तालमेल साफ दिखता है।
चुनौतियाँ: क्यों अभी भी रास्ता लंबा है
सच कहें तो भारत में इको-टूरिज़्म कई बार सिर्फ नाम तक सीमित रह जाता है।
- कई “इको-रिसॉर्ट” सिर्फ ब्रांडिंग के लिए यह शब्द इस्तेमाल करते हैं।
- इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी: कई जगह सड़क और साफ-सफाई की समस्या है।
- पर्यटकों में जागरूकता की कमी: वे अक्सर प्लास्टिक, शोर और भीड़ का बोझ छोड़ जाते हैं।
- सरकारी नीतियों में स्पष्टता की कमी: किसे अनुमति मिले, किसे नहीं—इस पर अस्पष्टता रहती है।
मैंने खुद देखा है कि एक “इको-फ्रेंडली कैंप” के बाहर डीज़ल जनरेटर लगातार चल रहा था। ऐसे दिखावे से असली उद्देश्य कमजोर हो जाता है।
भविष्य का रोडमैप: भारत को क्या करना होगा
अगर भारत को इको-टूरिज़्म का भविष्य सच करना है, तो कुछ ठोस कदम ज़रूरी हैं।
1. स्थानीय समुदाय को केंद्र में रखना
गाँव वाले और आदिवासी लोग ही असली संरक्षक हैं। उनके बिना कोई भी इको-टूरिज़्म सिर्फ दिखावा है।
2. तकनीक का इस्तेमाल
सोलर एनर्जी, डिजिटल परमिट सिस्टम, और स्मार्ट वेस्ट मैनेजमेंट से काफी सुधार संभव है।
3. शिक्षा और जागरूकता
यात्रियों को यह समझाना ज़रूरी है कि कम सामान, कम प्लास्टिक और स्थानीय जीवन का सम्मान ही सही पर्यटन है।
4. सख्त नियम
संवेदनशील क्षेत्रों (जैसे हिमालयी ट्रेक, कोरल रीफ) पर भीड़ को सीमित करना होगा।
इको-टूरिज़्म और रोजगार
इको-टूरिज़्म का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह सीधे स्थानीय युवाओं को रोजगार देता है।
- गाइड
- होमस्टे मालिक
- हस्तशिल्प विक्रेता
- लोक कलाकार
कई जगह महिलाएँ भी इस बदलाव का नेतृत्व कर रही हैं। सिक्किम और मेघालय में महिला-प्रबंधित होमस्टे इसकी मिसाल हैं।
भारत के इको-टूरिज़्म हब – एक झलक
क्षेत्र | खासियत | भविष्य की संभावना |
---|---|---|
हिमालयी क्षेत्र | ट्रेकिंग, मठ, वाइल्डलाइफ़ | सीमित पर्यटक, उच्च शुल्क, पर्यावरण संतुलन |
केरल बैकवाटर | हाउसबोट्स, गांव जीवन | सोलर हाउसबोट्स, प्लास्टिक-फ्री क्षेत्र |
पूर्वोत्तर भारत | जनजातीय संस्कृति, जैव विविधता | सामुदायिक पर्यटन, पारंपरिक त्योहार |
राजस्थान | रेगिस्तान, किले, गाँव | सस्टेनेबल डेज़र्ट टूरिज़्म |
अंडमान-निकोबार | समुद्री जीवन, कोरल रीफ | नियंत्रित स्कूबा, संरक्षण-आधारित मॉडल |
व्यक्तिगत अनुभव: जब इको-टूरिज़्म सच लगा
कुछ साल पहले मैं मुनस्यारी (उत्तराखंड) गया। वहाँ एक स्थानीय होमस्टे में ठहरा। होस्ट ने कहा, “हमारे पास टीवी नहीं, पर आप आसमान देख सकते हैं।” रात को सचमुच आकाशगंगा चमक रही थी। सुबह खेत में आलू खोदने का अनुभव हुआ। वही आलू नाश्ते में खाया। यह अनुभव किसी पांच सितारा होटल से कहीं ज्यादा यादगार था।
जलवायु परिवर्तन और इको-टूरिज़्म
भविष्य का सबसे बड़ा सवाल है: जलवायु परिवर्तन। हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। समुद्र तट पर रहने वाले गाँव डूबने के खतरे में हैं।
इको-टूरिज़्म यहाँ समाधान का हिस्सा बन सकता है।
- कार्बन फुटप्रिंट घटाना।
- स्थानीय खेती और जैव विविधता को समर्थन देना।
- नवीकरणीय ऊर्जा को प्राथमिकता देना।
आने वाले दशक की तस्वीर
अगर भारत सही दिशा में चला, तो 2035 तक भारत एशिया का सबसे बड़ा इको-टूरिज़्म डेस्टिनेशन बन सकता है।
- घरेलू पर्यटन में इको-ट्रिप्स की मांग तेजी से बढ़ेगी।
- युवा पर्यटक अनुभव आधारित यात्रा को प्राथमिकता देंगे।
- सरकार और निजी क्षेत्र मिलकर “ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर” पर काम करेंगे।
निष्कर्ष
भारत का भविष्य हरा है—अगर हम चाहें। इको-टूरिज़्म कोई विकल्प नहीं, बल्कि ज़रूरत है। यह न सिर्फ पर्यावरण बचाता है, बल्कि संस्कृति और समुदाय को भी जोड़ता है।
यात्रा का असली मकसद सिर्फ जगह देखना नहीं, बल्कि सीखना है। और इको-टूरिज़्म हमें यही सिखाता है: प्रकृति का सम्मान, संस्कृति का आदर, और जिम्मेदार यात्रा।

भारती शर्मा एक स्वतंत्र पत्रकार और लेखिका हैं, जिनका झुकाव हमेशा से समाज, संस्कृति और पर्यावरण से जुड़ी कहानियों की ओर रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने विभिन्न स्थानीय समाचार पत्रों और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर काम किया।
भारती का मानना है कि खबरें सिर्फ़ सूचनाएँ नहीं होतीं, बल्कि लोगों की आवाज़ और समाज की धड़कन होती हैं। इसी सोच के साथ वह Hindu News Today के लिए लिखती हैं। उनकी लेखनी कला, प्रकृति, खेल और सामाजिक बदलावों पर केंद्रित रहती है।
उनकी शैली सीधी, संवेदनशील और पाठकों से जुड़ने वाली है। लेखों में वह अक्सर ज़मीनी अनुभवों, स्थानीय किस्सों और सांस्कृतिक संदर्भों को शामिल करती हैं, ताकि पाठकों को सिर्फ़ जानकारी ही नहीं बल्कि जुड़ाव भी महसूस हो।