भौतिक पता
सिविक सेंटर, उत्तरापान शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, उल्टाडांगा, कंकुरगाछी कोलकाता, पश्चिम बंगाल, 700054
अगर आपने कभी दादी की पुरानी संदूक से निकली हुई हाथ से बुनी चादर को गौर से देखा है, या कारीगर की हथेली से निकली मिट्टी की खुशबू महसूस की है — तो समझ पाएँगे कि परंपरा सिर्फ अतीत की बात नहीं। वह हमारे घरों में, हमारी यादों में और अब तो ग्लोबल डिज़ाइन स्टूडियो में भी साँस ले रही है।
आज जो सोफ़ा मिलान के फर्नीचर मेले में चमकता है, उसमें कच्छ की कढ़ाई का पैटर्न है। जो लैंप न्यूयॉर्क के किसी मिनिमलिस्ट अपार्टमेंट में रखा है, उसमें राजस्थान की ब्लू पॉटरी की गूँज है। यही है कहानी — कैसे पारंपरिक हस्तशिल्प आधुनिक डिज़ाइन को प्रेरित कर रहा है।
परंपरा की धड़कन
भारत का हर इलाका अपनी पहचान किसी न किसी हस्तकला से जोड़ता है। बनारस की ज़री, भुज की कच्छी कढ़ाई, सहारनपुर की लकड़ी की नक्काशी, कश्मीर की पेपर माशे। ये सिर्फ कला नहीं, जीवन का हिस्सा थे। जब शादी होती थी तो दुल्हन अपने साथ चादर ही नहीं, एक पूरी विरासत ले जाती थी।
आज वही चीज़ें नए संदर्भ में सामने आ रही हैं। डिज़ाइनर अब इन शिल्पों को “heritage branding” कहकर पेश करते हैं। लेकिन असली फर्क यह है कि इन्हें सिर्फ स्मृति के लिए नहीं, रोज़मर्रा के इस्तेमाल के लिए फिर से गढ़ा जा रहा है।
बदलते दौर में हस्तशिल्प का असर
जब IKEA जैसी कंपनियाँ भारत आईं, तो उन्होंने भी देखा कि सिर्फ स्कैंडिनेवियन सादगी से काम नहीं चलेगा। उन्हें भारतीय पैटर्न, टेक्सचर और कारीगरी से जुड़ना पड़ा।
उदाहरण के लिए, राजस्थान की ब्लॉक प्रिंटिंग। यह तकनीक पहले केवल कपड़ों और परदों में थी। आज वही पैटर्न टेबल मैट, लैंप शेड, वॉलपेपर तक पहुँच गया है।
पारंपरिक हस्तकला और आधुनिक उपयोग
हस्तशिल्प | पारंपरिक रूप | आधुनिक डिज़ाइन में उपयोग |
---|---|---|
ब्लॉक प्रिंटिंग (राजस्थान) | कपड़े, दुपट्टे | वॉलपेपर, टेबल लिनेन, कुशन कवर |
बांस/बेंत की बुनाई | टोकरियाँ, चटाई | मॉड्यूलर फर्नीचर, लैंप शेड |
ज़री और ज़रदोज़ी (वाराणसी/लखनऊ) | शादी के कपड़े | क्लच बैग, जूते, कस्टम जैकेट |
डोकरा मेटल वर्क (छत्तीसगढ़) | मूर्तियाँ, पूजा सामग्री | आर्ट इंस्टॉलेशन, होम डेकोर पीस |
ब्लू पॉटरी (जयपुर) | बर्तन | टेबलटॉप, टाइल्स, लाइटिंग फिटिंग्स |
इंस्पिरेशन की परतें
यह बात सिर्फ पैटर्न तक सीमित नहीं। कारीगरी ने आधुनिक डिज़ाइन को सोचने का नया नजरिया दिया है।
- सस्टेनेबिलिटी: जब बाँस का फर्नीचर या खादी का कपड़ा सामने आता है, तो डिज़ाइनर इसे “eco-friendly” टैग के साथ जोड़ते हैं। लेकिन असल में यह विचार तो गाँव के कारीगर की रोज़मर्रा का हिस्सा था।
- हैंडमेड की खूबसूरती: आधुनिक ग्राहक मशीन की परफेक्शन से ऊब गया है। उसे थोड़ी असमानता, थोड़ी खुरदराहट चाहिए — क्योंकि वही असली है।
- कहानी कहने की ताक़त: हर हस्तशिल्प के पीछे एक कहानी है। जब कोई डिज़ाइनर नागालैंड के बुनकर की कहानी अपने प्रॉडक्ट के साथ बताता है, तो वह सिर्फ चीज़ नहीं बेचता, एक अनुभव बेचता है।
अनुभव से जुड़ी एक झलक
मुझे याद है, 2021 में दिल्ली के India Design ID मेले में एक स्टॉल देखा था। वहाँ लकड़ी की एक साधारण-सी कुर्सी थी, लेकिन उसकी पीठ पर चित्तरंजन के कारीगरों की पारंपरिक नक़्क़ाशी थी। लोग उस कुर्सी को देखकर बस बैठ नहीं रहे थे, तस्वीरें खींच रहे थे। उस समय लगा कि हस्तशिल्प और आधुनिकता का यह मेल किसी ट्रेंड से ज़्यादा है। यह एक भावनात्मक जुड़ाव है।
ग्लोबल मंच पर भारतीय शिल्प
आज यूरोप और अमेरिका की बड़ी कंपनियाँ भारतीय कारीगरों के साथ कोलैबोरेशन कर रही हैं।
- Anthropologie ने राजस्थान के ब्लॉक प्रिंट को अपनी होम लाइन में इस्तेमाल किया।
- Hermès जैसे लक्ज़री ब्रांड ने वाराणसी की सिल्क से स्कार्फ तैयार किए।
- जापान के डिज़ाइनर्स ने नागालैंड के बुनाई पैटर्न को अपने फैशन शो में उतारा।
यह सिर्फ एक्सपोर्ट का मामला नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक पहचान को ग्लोबल डिज़ाइन डिक्शनरी में दर्ज करने जैसा है।
क्यों ज़रूरी है यह मेल?
- कारीगरों के लिए नया बाज़ार – जब पारंपरिक शिल्प आधुनिक डिज़ाइन में जगह बनाते हैं, तो गाँव के कारीगर को सीधा फायदा होता है।
- संस्कृति का संरक्षण – अगर ये पैटर्न, ये तकनीक आधुनिक रूप में न जीतीं, तो शायद संग्रहालयों में ही कैद हो जातीं।
- ग्राहक की बदलती चाहत – आज का ग्राहक सिर्फ “सस्ता और टिकाऊ” नहीं चाहता। उसे कहानी चाहिए, ओरिजिनैलिटी चाहिए।
चुनौती भी कम नहीं
यह रास्ता आसान नहीं है।
- बहुत बार बड़े डिज़ाइनर लोकल कारीगर को नाम नहीं देते, बस पैटर्न उठाकर बेच देते हैं।
- कारीगर और डिज़ाइनर के बीच भाषा और बाज़ार का फासला है।
- और हाँ, कई बार आधुनिकता के नाम पर परंपरा की आत्मा खो भी जाती है।
भविष्य की दिशा
आज टेक्सटाइल डिज़ाइन कॉलेजों में छात्र सीधे कारीगरों के गाँवों में जाकर रिसर्च करते हैं। सोशल मीडिया के ज़रिए कारीगर इंस्टाग्राम पर अपनी दुकान खोल रहे हैं। और 3D प्रिंटिंग जैसी तकनीकें भी पारंपरिक पैटर्न को नए मटेरियल पर उतार रही हैं।
सोचिए, आने वाले समय में जब आपके घर की स्मार्ट लाइटिंग पर मध्य प्रदेश की गोंड कला छपी होगी — तो वह सिर्फ लाइट नहीं, एक जीवित परंपरा होगी।
निष्कर्ष
परंपरागत हस्तशिल्प और आधुनिक डिज़ाइन का रिश्ता अब “अतीत बनाम वर्तमान” का नहीं रह गया है। यह मेल है, संवाद है। जब आधुनिक डिज़ाइनर कारीगर के हाथ की गरमी को अपने स्टूडियो में जगह देता है, तो वह प्रॉडक्ट सिर्फ चीज़ नहीं रह जाता — वह विरासत बन जाता है।
और सच कहूँ, जब भी मैं किसी अंतरराष्ट्रीय कैटलॉग में ब्लॉक प्रिंट का मोटिफ देखता हूँ, तो लगता है कि दादी की संदूक से निकली वह चादर अब दुनिया के ड्रॉइंग रूम तक पहुँच गई है।

भारती शर्मा एक स्वतंत्र पत्रकार और लेखिका हैं, जिनका झुकाव हमेशा से समाज, संस्कृति और पर्यावरण से जुड़ी कहानियों की ओर रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने विभिन्न स्थानीय समाचार पत्रों और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर काम किया।
भारती का मानना है कि खबरें सिर्फ़ सूचनाएँ नहीं होतीं, बल्कि लोगों की आवाज़ और समाज की धड़कन होती हैं। इसी सोच के साथ वह Hindu News Today के लिए लिखती हैं। उनकी लेखनी कला, प्रकृति, खेल और सामाजिक बदलावों पर केंद्रित रहती है।
उनकी शैली सीधी, संवेदनशील और पाठकों से जुड़ने वाली है। लेखों में वह अक्सर ज़मीनी अनुभवों, स्थानीय किस्सों और सांस्कृतिक संदर्भों को शामिल करती हैं, ताकि पाठकों को सिर्फ़ जानकारी ही नहीं बल्कि जुड़ाव भी महसूस हो।